मध्य प्रदेशः क्या चूक जाएंगे चौहान!

शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड तो बना लिया है लेकिन उनके सामने बड़ी चुनौती अगले 6 महीने में आने वाली है. 6 महीने के अंदर ही शिवराज सिंह चौहान के सामने उपचुनाव में भाजपा की नैया पार लगाने की जिम्मेदारी होगी.


ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा का रुख करने वाले 22 विधायकों और दो अन्य रिक्त सीटों पर उपचुनाव होंगे. कुुल 24 सीटों पर उपचुनाव मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार और खुद शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक जीवन की दिशा तय करेंगे.


चौहान के सामने यह चुनौती होगी कि जिन 24 सीटों पर उपचुनाव होने हैं उनमें कम से कम 10 सीटों पर भाजपा को जीत दिलाना होगा. यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो शिवराज सिंह की कुर्सी खतरे में पड़ जाएगी और भाजपा के हाथ से आया हुआ राज्य निकल जाएगा.


कर्नाटक में भाजपा ने यह करामात कर दिखाया था. वहां कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों और मंत्रियों के इस्तीफा देने से खाली हुए सीटों पर जब उपचुनाव हुए तब मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा ने भाजपा को जीत दिलाकर अपनी सरकार की स्थिरता को सुनिश्चित किया था.


किन्त्तु मध्यप्रदेश के मामले में स्थिति इतनी आसान नहीं है.


मध्य प्रदेश में सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होता आया है. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इन 22 सीटों पर भाजपा को हराया था. यहां से कांग्रेस के जो प्रत्याशी प्रत्याशी जीते थे उनमें से ज्यादातर को इस बार भाजपा टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारेगी. इस वजह से भाजपा के कैडर की नाराजगी स्वाभाविक होगी.



 


इन 22 सीटों पर 2018 के चुनाव में भाजपा के जो प्रत्याशी थे वह उपचुनाव के लिए दोबारा टिकट की उम्मीद में होंगे. इन्हें टिकट नहीं दिए जाने पर कैडर में नाराजगी हो सकती है क्योंकि मध्य प्रदेश में कर्नाटक की तरह विधान परिषद का भी विकल्प नहीं है. इसलिए नाराज कैडर को विधान परिषद भेजने का आश्वासन भी भाजपा नहीं दे सकती है. लिहाजा भाजपा के लिए मामले को संभालना कठिन हो सकता है.


एक अहम दिक्कत भाजपा के सामने यह भी हो सकती है की कांग्रेस के जो बागी विधायक हुए हैं वह दोबारा से कांग्रेसी समर्थकों का वोट हासिल कर लें इस बात की संभावना बहुत कम है. ऐसे में इन विधायकों की जीत हार सब कुछ भाजपा कैडर के रुख पर निर्भर करता है.


पार्टी के अंदर भी शिवराज के विरोधियों की तादाद कम नहीं है. शिवराज को पार्टी के अंदर के अपने विरोधियों को भी साधना होगा और कडर को भी साधते हुए कांग्रेस से आए विधायकों को टिकट दिलवा कर उन्हें जिताने की चुनौती होगी जो मौजूदा समीकरण के हिसाब से असंभव न सही, कठिन जरूर है.


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